Saturday, 14 May 2016

पुराने पन्नों से -

"लड़कियाँ जो पुल होती हैं" से उध्दृत।  




-पीछे छूट गए लोग-


पीछे छूट गए लोग 
बेहद घने होते हैं 
एक ही जगह ठहरे हुए 
ज़मीन में जा धंसते  हैं
बहुत गहरे 
मज़बूत 
और फैली जड़ों के सहारे 
अपना तना 
मोटा करते चले जाते हैं  
पीछे छूट गए लोग 
अतीत होते हैं 
भूली बिसरी संस्कृति होते हैं 
छायादार होते हैं 
पीछे छूट गए लोग 
भूत और वर्तमान के बीच 
बचाए रखते हैं 
अपनी शाखों से झूलती 
लगातार लम्बी होती जड़ें 
इसिलए तो पूजते हैं हम 
बरगद का पेड़ 


-संवेदना -
२००६ 
भोपाल 

Wednesday, 11 May 2016

Holi - (Indian Classical Vocal by Sarita Yajurvedi)



अत्यन्त सुखद है सरिता यजुर्वेदी को सुनना !!









पुराने पन्नों से:

 २००६.
 "लड़कियां जो पुल होती हैं से उद्धृत" !






-अच्छे लोग -


हर रिश्ते  लिए कटते -बंटते
हर रिश्ते के साथ
न्याय करते करते
अच्छे लोग
सीधे -सादे मनुष्य
लगातार हो रहे हैं
अदृश्य

जो नहीं जानते ज़्यादा
 रिश्तों का हिसाब -किताब
जो नहीं चाहते
हमेशा बदलते रहना
जीने का हर बार
एक नया अंदाज़
जो यूँ ही ख़ामख़ा
हर दो तीन महीने में
नहीं बदलते रहते
अपने घर की दीवारों के रंग
अपनी कार
बर्तन
कपड़े
और फ़र्नीचर

ऐसे लोग
अपनी आवाज़ दबाए
क्यूँ
पड़े हैं चुपचाप ?

निरन्तर ख़ामोशी से
अपनी सारी ऊर्जा
इंसानियत की डोर
और
उसकी कड़ियाँ जोड़ने में
लगा रहे हैं
और
उनका साथ देने वाले
लगातार
होते चले जा रहे हैं कम

सादगी और गहराई से
अपनी छोटी- सी
दुनिया में
इतनी बड़ी -बड़ी बातों
को लेकर
जीते हैं जाने कहाँ

दुनिया से कटकर नहीं
बल्कि उसमें
कुछ इस तरह
घुल मिलकर
कि कड़वाहट के संग
कड़वाहट
खटास के साथ
खटास बनकर
मिठास में
और ज़्यादा मिठास बनकर
हो जाते हैं
सबके अपने
ताकि सुरूर बना रहे
अच्छेपन का
अच्छे होने का
और
इस सुरूर को पाने के लिए
तरसते रहें लोग
जब ख़त्म होने लगे
मद का सुरूर
पैसे का सुरूर
ऐश -ओ-आराम का
सुरूर

तो
एक दो घूँट
पी आते हैं लोग
किसी अच्छे भले आदमी की
चौखट पर
नाक रगड़कर
आँख बचाते
दुनिया से
ज़रूरत पड़ने पर
ज़रूर ढूँढ़ते हैं
ऐसी चौखटें
और
सुरूर पीकर
घर लौटकर
दोनों पैर पसारे
पालते हैं बेशर्मी

और फिर
तैयार हो जाते हैं
दुनिया में
कूद पड़ने के लिए

इस बीच
अच्छे लोग
छोटी -सी
ज़मीन पर ही
उगाते हैं पौधे
मग्न होकर सुनते हैं
सुन्दर संगीत
घंटों रमकर
 देखते हैं
बच्चों को खेलते हुए
सूरज ढलते हुए
नीले आसमान में
उड़ते
रुई जैसे बादल के टुकड़े

अच्छे लोग बचाए  रखते हैं
किसी न किसी तरह से
अच्छाई
और उनका
लगातार कम होना
ख़तरा है
किसी महत्वपूर्ण
प्रजाति की तरह
उसका
लुप्त होते चले जाना

अच्छे लोग हैं
तभी हैं
पहाड़, नदियाँ ,
शेर , बाघ
चीते , घड़ियाल ,
चिड़ियाँ

अच्छे लोगों को बचाने के लिए
हमें झाँकना होगा
अपने भीतर
अपनी  नंगी आत्मा को
शीशे में देखना होगा
क्यूँकि
अच्छे लोग
ग़ायब होते हुए भी
शोर नहीं मचाएँगे
और बस !
अदृश्य होते चले जाएँगे !


-संवेदना -
२००६
भोपाल

Sunday, 8 May 2016

My point of view today!
WE OWE!
We really owe a lot to our writers who write in our regional languages.......
We certainly owe a lot to our folk artists as well..........................
We owe to ...................
people who are constantly acting as a bridge between the forgotten and slowly diminishing cultural arenas and what has remained as a residue of culture mingling and getting polluted very fast with the urbanised sensibilities of culture.
A sad occassion though, death of *Lakshmi Holmstrom, but I take it as an opportunity to have a reason to relook into our indigenous, rustic elements of culture which are so quintessential to any native land. The life of people like Lakshmi Holmstrom and their contribution should be a more celebrated objective rather than mourning for
- merely their - physical disappearence one day!
One of the best poems, songs, dramas, nautankis, basic instruments rests in and gets nurtured in the rustic laps of our folklores, folk music and folk dance linking us back to our tribes and a forest connect.
As a storyteller I keep connecting with children, people from all walks of life existing almost at drastically different ends. Rural, urban, semi -urban - they occupy positions of extreme oppositions of practising culture, formulating a typical psyche of people, especially children and their conscious belongingness to their indigenous identity.
Whenever and whichever way, I find time to interact and have a meaningful dialogue with growing children, there are always those few special poems and stories which often manifest in my endeavour towards transforming it into a dynamic conversation. Surprisingly, if given an opportunity, growing children reason and open up beautifully to talk about their native connect. Although, it's always very disheartening for me, to learn that parents and school authorities seldom understand and hardly give any space to artists or storytellers to talk to children beyond the pre-determined and defined limitations of curriculum and escapist ways of imparting education.
I am often reminded of a lovely and one of the most important poems of Hindi literature by Nagarjun while interacting with children. Mainly, because it opens the gates of the first circle of belongingness ( going closer to far) through Hindi only, thus slowly giving way to seep in through their dialects and native cultural elements.
अकाल और उसके बाद
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
It's such an irony that children in metro cities don't relate to any of these elements in the above poetry easily. On the contrary,as a storyteller I have found, that many children from the lower economic strata, specially those who have migrated from rural areas have a high receptivity for poems and stories like these. So much so, that they are able to come forth with many other poems, songs and stories out of their rural associations in their own regional languages and dialects. Increasingly, conservation of these kinds of rural cultural associations is becoming an impossibility. Mainly owing to the rampant and indiscriminate nature of the migration and translocation of these children.
Amidst, all this we find people like Lakshmi Holmstrom, one of the greatest translators of Tamil literature, and many other artists and poets who contribute throughout their lives; consciously and painstakingly putting an effort to carry from one language to another, thus, also taking care of our regional literature and indigenous constituents as a whole!
We owe a sense of gratitude for these people,doing their spade work towards conserving these rural cultural associations.
-Samvedna
8th May'2016
Mumbai
(Courtesy: Mumbai Mirror)
*Lakshmi Holmstrom, one of the greatest translators of Tamil literature, and award-winning translator of short stories and poetry from the Tamil canon, passed away yesterday.
(Excerpt from Mumbai mirror)
"I've always been fascinated by what is said in one language and how that may be 'carried over' into another; what works and what doesn't and why. Meanings aren't in dictionaries alone," she said in an interview in 2013.
(Excerpt from Mumbai mirror)

Friday, 6 May 2016

naazuqkhayaali......

नए पन्नों से........... 

-Etiolation-



An etiolated leaf
yearning it's green vigour
has not lost it's shine yet
though it's feeble presence
in the world
where it belongs to
has survived for more than a decade
through an inconspicuous attachment
a span so long
and unnatural
unheard of
any flora
breathing so long
in the jungles of life
where everything
and anything else
lives and
transpires
through their
own stem
trunk
and roots
but
there occurred
a mutation
as if
an irony
it did glimmer
for sometime
but then
started radiating
as if
a colourful story
but amiss!
started
losing it's charm
slowly
and now
has become the past
with it's ruins
waiting
for a rain
pouring down
spurting out
from a settled
old and
silenced cloud
condensed
filled
with the vapours
of tranquillity
erupting
from an old
dissociate memory
but infused only and only
with love!!
- Samvedna
6th May'2016
Mumbai
पुराने पन्नों से ......
२००३ की कविता

-तुम मेरा आसमाँ-
तुम कौन हो
कहाँ हो
मैं ये नहीं जानती
लेकिन !
एक ख़ुशनुमा परिन्दे की मानिन्द
उड़ान भरूँगी
जिसके घनेपन के बीचोंबीच
उन तमाम बादलों से बना
तुम
मेरा पूरा एक आसमाँ हो
मेरे मन में
कुछ इतना गहरे उतर जाना
मेरे मन की
थाह पा जाना
फिर देखना !
मैं तुम्हारी अपनी
कुछ इस तरह हो जाऊँगी
के
अपनी उड़ान तुम्हें देकर
कुछ देर के लिए तुम
यानि
आसमान बन जाऊँगी
मेरी उड़ान भरकर तुम
तुम्हारे नीलेपन में उड़ने का
मेरा सुख महसूस कर लेना
इतनी देर में
अपने दामन की कूची से
मैं
और गाढ़ा नीला रंग
आसमान में फेर आऊँगी
तुम्हारे नीले आकाश में
नीलेपन पर
एक बार फिर
ख़ुश होऊँगी
इतराऊँगी
अपनी उड़ान तुम से वापस लेकर
दोबारा
वही ख़ुश परिन्दा बन जाऊँगी
तुम्हारे आसमान में उडूँगी
उड़ते उड़ते थक जाऊँगी
तो
तुम्हारे आसमान में ही
सुस्ताऊँगी
तुम्हारा घनापन कम होने लगे
तो
चोंच में दबाकर
घने बादल के टुकड़े ले आऊँगी
तुम्हारा फीकापन
ज़रा भी न देख सकी
तो
उड़ते उड़ते अपनी दामन की कूची
एक बार फिर
फेर आऊँगी
गाढ़ा नीला रंग
जगह जगह भर आऊँगी
बस!
तुम मेरा आसमान बने रहना
और
मैं परिन्दा बनकर
उसके घनेपन
नीलेपन
और समूचे विस्तार को
आत्मा में
कहीं बहुत गहरे छिपा जाऊँगी
- संवेदना
२००३
भोपाल
नए पन्नों से

-सहज विज्ञापन -

अगर यह बहुत सहज था 
कि बड़ी आसानी से विज्ञापनों ने
पा ली है जगह
अख़बार के पहले पन्ने पर
तो क्या
यह भी उतना ही आसान
उतना ही सहज
होना चाहिए था
कि बच्चों के
आई आई टी
मेडिकल इम्तिहानों की
अव्वल श्रेणियों में
आ जाने के विज्ञापन
भी अंकित हों
पहले पन्ने पर
हम और हमारा समाज
आख़िर
कब आ गिरा
इतना नीचे
कि
पता भी ना चला
कि
हमारे बच्चे
कब हुए नौजवान
और फिर
पूरी शिद्दत के साथ
हमारे समाज का आइना
होते होते
हमारा विज्ञापन
हो गए
और फिर हम लिखते हैं
बड़े बड़े लेख
नौजवानों
बच्चों की बढ़ती
आत्महत्याओं पर
उसी अख़बार के
भीतर के पन्नों पर छापते भी हैं
करते हैं सरकारी पैसा ख़र्च
बड़ी संगोष्ठियों
सेमिनारों में
मानवीय सरोकारों के
न जाने कितने
समीकरण खोजने के
तरीकों पर
करते हैं बात
और ये भूल जाते हैं कि
इन विज्ञापनों में झूलती
इक्कीस -बाइस बरस की
ज़िन्दगियों में उस वक़्त
रच रहा होता है
ऐसा बहुत कुछ
जो इन विज्ञापनों की सच्चाई से
बहुत ऊपर होता है
बहुत बड़ा
बहुत ख़ूबसूरत होता है
उनकी हार
उनके देखे तो कभी अनदेखे
से सपने
पहला प्रेम
ईर्ष्या भी
द्वेष भी
लेकिन जीवन जी भर के
जी लेने को लालायित
जिसे अक़्सर
उम्र की परिपक्वता के
दूसरे मुहाने पर खड़े
देख सकते हैं
वे सभी बड़े
जिन्हें ज़रूरी है
इन पौधों की आकांक्षाओं
में पानी सींचना
रोपना अपने तजुर्बे
सिर्फ और सिर्फ
ज़िन्दगी की सौंधी खुशबू के लिए
दुनिया और दुनिया भर के
बच्चों
नौजवानों के बिना शर्तों वाले
ज़िन्दगी से भरे जीवन के लिए
-संवेदना -
५ मई '२०१६
मुंबई