Friday 6 May 2016

नए पन्नों से

-सहज विज्ञापन -

अगर यह बहुत सहज था 
कि बड़ी आसानी से विज्ञापनों ने
पा ली है जगह
अख़बार के पहले पन्ने पर
तो क्या
यह भी उतना ही आसान
उतना ही सहज
होना चाहिए था
कि बच्चों के
आई आई टी
मेडिकल इम्तिहानों की
अव्वल श्रेणियों में
आ जाने के विज्ञापन
भी अंकित हों
पहले पन्ने पर
हम और हमारा समाज
आख़िर
कब आ गिरा
इतना नीचे
कि
पता भी ना चला
कि
हमारे बच्चे
कब हुए नौजवान
और फिर
पूरी शिद्दत के साथ
हमारे समाज का आइना
होते होते
हमारा विज्ञापन
हो गए
और फिर हम लिखते हैं
बड़े बड़े लेख
नौजवानों
बच्चों की बढ़ती
आत्महत्याओं पर
उसी अख़बार के
भीतर के पन्नों पर छापते भी हैं
करते हैं सरकारी पैसा ख़र्च
बड़ी संगोष्ठियों
सेमिनारों में
मानवीय सरोकारों के
न जाने कितने
समीकरण खोजने के
तरीकों पर
करते हैं बात
और ये भूल जाते हैं कि
इन विज्ञापनों में झूलती
इक्कीस -बाइस बरस की
ज़िन्दगियों में उस वक़्त
रच रहा होता है
ऐसा बहुत कुछ
जो इन विज्ञापनों की सच्चाई से
बहुत ऊपर होता है
बहुत बड़ा
बहुत ख़ूबसूरत होता है
उनकी हार
उनके देखे तो कभी अनदेखे
से सपने
पहला प्रेम
ईर्ष्या भी
द्वेष भी
लेकिन जीवन जी भर के
जी लेने को लालायित
जिसे अक़्सर
उम्र की परिपक्वता के
दूसरे मुहाने पर खड़े
देख सकते हैं
वे सभी बड़े
जिन्हें ज़रूरी है
इन पौधों की आकांक्षाओं
में पानी सींचना
रोपना अपने तजुर्बे
सिर्फ और सिर्फ
ज़िन्दगी की सौंधी खुशबू के लिए
दुनिया और दुनिया भर के
बच्चों
नौजवानों के बिना शर्तों वाले
ज़िन्दगी से भरे जीवन के लिए
-संवेदना -
५ मई '२०१६
मुंबई

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