Wednesday, 11 May 2016




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 २००६.
 "लड़कियां जो पुल होती हैं से उद्धृत" !






-अच्छे लोग -


हर रिश्ते  लिए कटते -बंटते
हर रिश्ते के साथ
न्याय करते करते
अच्छे लोग
सीधे -सादे मनुष्य
लगातार हो रहे हैं
अदृश्य

जो नहीं जानते ज़्यादा
 रिश्तों का हिसाब -किताब
जो नहीं चाहते
हमेशा बदलते रहना
जीने का हर बार
एक नया अंदाज़
जो यूँ ही ख़ामख़ा
हर दो तीन महीने में
नहीं बदलते रहते
अपने घर की दीवारों के रंग
अपनी कार
बर्तन
कपड़े
और फ़र्नीचर

ऐसे लोग
अपनी आवाज़ दबाए
क्यूँ
पड़े हैं चुपचाप ?

निरन्तर ख़ामोशी से
अपनी सारी ऊर्जा
इंसानियत की डोर
और
उसकी कड़ियाँ जोड़ने में
लगा रहे हैं
और
उनका साथ देने वाले
लगातार
होते चले जा रहे हैं कम

सादगी और गहराई से
अपनी छोटी- सी
दुनिया में
इतनी बड़ी -बड़ी बातों
को लेकर
जीते हैं जाने कहाँ

दुनिया से कटकर नहीं
बल्कि उसमें
कुछ इस तरह
घुल मिलकर
कि कड़वाहट के संग
कड़वाहट
खटास के साथ
खटास बनकर
मिठास में
और ज़्यादा मिठास बनकर
हो जाते हैं
सबके अपने
ताकि सुरूर बना रहे
अच्छेपन का
अच्छे होने का
और
इस सुरूर को पाने के लिए
तरसते रहें लोग
जब ख़त्म होने लगे
मद का सुरूर
पैसे का सुरूर
ऐश -ओ-आराम का
सुरूर

तो
एक दो घूँट
पी आते हैं लोग
किसी अच्छे भले आदमी की
चौखट पर
नाक रगड़कर
आँख बचाते
दुनिया से
ज़रूरत पड़ने पर
ज़रूर ढूँढ़ते हैं
ऐसी चौखटें
और
सुरूर पीकर
घर लौटकर
दोनों पैर पसारे
पालते हैं बेशर्मी

और फिर
तैयार हो जाते हैं
दुनिया में
कूद पड़ने के लिए

इस बीच
अच्छे लोग
छोटी -सी
ज़मीन पर ही
उगाते हैं पौधे
मग्न होकर सुनते हैं
सुन्दर संगीत
घंटों रमकर
 देखते हैं
बच्चों को खेलते हुए
सूरज ढलते हुए
नीले आसमान में
उड़ते
रुई जैसे बादल के टुकड़े

अच्छे लोग बचाए  रखते हैं
किसी न किसी तरह से
अच्छाई
और उनका
लगातार कम होना
ख़तरा है
किसी महत्वपूर्ण
प्रजाति की तरह
उसका
लुप्त होते चले जाना

अच्छे लोग हैं
तभी हैं
पहाड़, नदियाँ ,
शेर , बाघ
चीते , घड़ियाल ,
चिड़ियाँ

अच्छे लोगों को बचाने के लिए
हमें झाँकना होगा
अपने भीतर
अपनी  नंगी आत्मा को
शीशे में देखना होगा
क्यूँकि
अच्छे लोग
ग़ायब होते हुए भी
शोर नहीं मचाएँगे
और बस !
अदृश्य होते चले जाएँगे !


-संवेदना -
२००६
भोपाल

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