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२००५
हमें हर दरवाज़े पर
दस्तक देना है
क्यूँकि
गिद्ध हमें
हमेशा देखता रहता है
गिद्ध की नज़र उसके
आँकड़े हैं
जोड़ - घटा
बाकी-गुणा करके
उसे पता चल ही जाएगा
कि
हमने कितनी खाईं
दर दर की ठोकरें
फटी कॉलर पर
ध्यान दिए बिना
ज़रूरी है उस पर
टाई लगाना
ग़लत - सलत अंग्रेजी में
बात करके ही
बेचना है हमें
हमारा भविष्य
हम पैसा कमाने के अलावा
किसी भी चीज़ का
सपना देखना
भूल चुके हैं
रात दिन चक्कर
काटते - काटते
हमें नहीं रह गया है याद
कि
कई बार जूते
किसी और चीज़ के लिए भी
घिसे जाते हैं
शहरों में हर किसी गली-नुक्कड़ पर
कुकुरमुत्ते की तरह उग आये
प्रबंधन संस्थान में
साथ पढ़े
विद्द्यार्थियों के अलावा
नहीं जानता कोई
कि
हम सबके बीच
एक होड़ है
कि
हम में से कौन बैठेगा
गिद्ध की जगह एक दिन
अपने कॉलेज के साथियों के बीच
हमें दोस्त ढूंढने की सख़्त मनाही थी
हर किसी में ढूंढना था
हमें पोटेंशियल खरीददार
हम अपने गाँव लौटकर
अपने पिता की तरह
मास्टर बनने नहीं निकले
हमें लौटना भी है अपने गाँव
तो वहाँ
एक बाज़ार ढूंढने के लिए ही
लौटना है
रात दिन सारी ज़िन्दगी
मेहनत करनी है
कि
ज़िन्दगी भर
बीवी - बच्चे
मन - भर के
करते रहें ख़रीदारी
कोई आओ
बंधाओ हमें ढाढस
कि हर दरवाज़े पर
दस्तक देना
अब बस !
थोड़े ही दिनों की बात रह गयी है।
- संवेदना
२००५ "लड़कियां जो पुल होती हैं" से उद्धृत।
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