Friday 6 May 2016

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२००३ की कविता

-तुम मेरा आसमाँ-
तुम कौन हो
कहाँ हो
मैं ये नहीं जानती
लेकिन !
एक ख़ुशनुमा परिन्दे की मानिन्द
उड़ान भरूँगी
जिसके घनेपन के बीचोंबीच
उन तमाम बादलों से बना
तुम
मेरा पूरा एक आसमाँ हो
मेरे मन में
कुछ इतना गहरे उतर जाना
मेरे मन की
थाह पा जाना
फिर देखना !
मैं तुम्हारी अपनी
कुछ इस तरह हो जाऊँगी
के
अपनी उड़ान तुम्हें देकर
कुछ देर के लिए तुम
यानि
आसमान बन जाऊँगी
मेरी उड़ान भरकर तुम
तुम्हारे नीलेपन में उड़ने का
मेरा सुख महसूस कर लेना
इतनी देर में
अपने दामन की कूची से
मैं
और गाढ़ा नीला रंग
आसमान में फेर आऊँगी
तुम्हारे नीले आकाश में
नीलेपन पर
एक बार फिर
ख़ुश होऊँगी
इतराऊँगी
अपनी उड़ान तुम से वापस लेकर
दोबारा
वही ख़ुश परिन्दा बन जाऊँगी
तुम्हारे आसमान में उडूँगी
उड़ते उड़ते थक जाऊँगी
तो
तुम्हारे आसमान में ही
सुस्ताऊँगी
तुम्हारा घनापन कम होने लगे
तो
चोंच में दबाकर
घने बादल के टुकड़े ले आऊँगी
तुम्हारा फीकापन
ज़रा भी न देख सकी
तो
उड़ते उड़ते अपनी दामन की कूची
एक बार फिर
फेर आऊँगी
गाढ़ा नीला रंग
जगह जगह भर आऊँगी
बस!
तुम मेरा आसमान बने रहना
और
मैं परिन्दा बनकर
उसके घनेपन
नीलेपन
और समूचे विस्तार को
आत्मा में
कहीं बहुत गहरे छिपा जाऊँगी
- संवेदना
२००३
भोपाल

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